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मुक्तिबोध की कविताई

अशोक चक्रधर

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :186
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13558
आईएसबीएन :9788171198511

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अशोक चक्रधर मुक्तिबोध की कविताओं पर कार्य करने वाले प्रारंभिक लेखकों में गिने जाते हैं

मुक्तिबोध के कला-सिद्धांत कविता को एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं, उनकी कविताई इसका जागता जीता प्रमाण है। उनकी कविताई में भ्रमों से परिपूर्ण युगीन यथार्थ का जीवन-जाल तो मिलता है पर उसकी बुनावट में रचनागत अर्थ का कोई भ्रम नहीं है। जो महानुभाव कविता को प्राय : प्राय : एक कलात्मक या शिल्पात्मक प्रक्रिया समझते हैं उनके लिए तो मुक्तियों ध की कविताएं निश्चित रूप से 'जटिल', 'अधूरी', 'आत्मपरक अभिव्यक्ति', 'भयानक' या 'ऊबड़-खाबड़, हो सकती हैं, किंतु यदि हम मुक्तिबोध की रचना-प्रक्रियापरक समझ से परिचित हो लें और उनके सूत्र- 'कला एक सामाजिक प्रक्रिया है'- को आधार मानकर उनकी रचनाओं में जाने की कोशिश करें, तो प्रत्यक्ष पाते हैं कि मुक्तिबोध शब्द के असामाजिक प्रयोग के कवि नहीं थे। हां, इतना तो है ही कि उनके कथ्य की सार्थकता तभी पकड़ में आ पाती है जब हम कविता के बारे में उनके स्वयं के दृष्टिकोण से रूबरू हो लें। ऐसा अगर हम कर लें तो उस गलती से भी बचा जा सकता है जो मुक्तिबोध के संदर्भ में जाने या अनजाने होती आ रही है। इस पुस्तक में मुक्तिबो ध की सैद्धांतिक समीक्षाई के आधार पर उनकी छोटी-बड़ी ग्यारह प्रमुख कविताओं की व्यावहारिक समीक्षा की गई है। साथ ही एक साफ-स्प थरा रास्ता बनाने की .कोशिश है कि जिस रास्ते पर चलकर मुक्तिबोध की कविताई तक पहुंचा जा सकता है। अशोक चक्रधर मुक्तिबोध की कविताओं पर कार्य करने वाले प्रारंभिक लेखकों में गिने जाते हैं। उनकी यह पुस्तक भी पाठकों को अत्यंत उपयोगी लगेगी।

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